सादा à¤à¤µà¤‚ सरल जीवन के मालिक पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦ सदा मसà¥à¤¤ रहते थे। उनके जीवन में विषमताओं और कटà¥à¤¤à¤¾à¤“ं से वह लगातार खेलते रहे। इस खेल को उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बाजी मान लिया जिसको हमेशा जीतना चाहते थे। अपने जीवन की परेशानियों को लेकर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤• बार मà¥à¤‚शी दयानारायण निगम को à¤à¤• पतà¥à¤° में लिखा "हमारा काम तो केवल खेलना है- खूब दिल लगाकर खेलना- खूब जी- तोड़ खेलना, अपने को हार से इस तरह बचाना मानों हम दोनों लोकों की संपतà¥à¤¤à¤¿ खो बैठेंगे। किनà¥à¤¤à¥ हारने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥ - पटखनी खाने के बाद, धूल à¤à¤¾à¥œ खड़े हो जाना चाहिठऔर फिर ताल ठोंक कर विरोधी से कहना चाहिठकि à¤à¤• बार फिर जैसा कि सूरदास कह गठहैं, "तà¥à¤® जीते हम हारे। पर फिर लड़ेंगे।" कहा जाता है कि पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦ हंसोड़ पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के मालिक थे। विषमताओं à¤à¤°à¥‡ जीवन में हंसोड़ होना à¤à¤• बहादà¥à¤° का काम है। इससे इस बात को à¤à¥€ समà¤à¤¾ जा सकता है कि वह अपूरà¥à¤µ जीवनी-शकà¥à¤¤à¤¿ का दà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤• थे। सरलता, सौजनà¥à¤¯à¤¤à¤¾ और उदारता के वह मूरà¥à¤¤à¤¿ थे। |
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जहां उनके हृदय में मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ के लिठउदार à¤à¤¾à¤µ था वहीं उनके हृदय में गरीबों à¤à¤µà¤‚ पीड़ितों के लिठसहानà¥à¤à¥‚ति का अथाह सागर था। जैसा कि उनकी पतà¥à¤¨à¥€ कहती हैं "कि जाड़े के दिनों में चालीस - चालीस रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ दो बार दिठगठदोनों बार उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने वह रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ पà¥à¤°à¥‡à¤¸ के मजदूरों को दे दिये। मेरे नाराज होने पर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि यह कहां का इंसाफ है कि हमारे पà¥à¤°à¥‡à¤¸ में काम करने वाले मजदूर à¤à¥‚खे हों और हम गरम सूट पहनें।" पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦ उचà¥à¤šà¤•à¥‹à¤Ÿà¤¿ के मानव थे। आपको गाà¤à¤µ जीवन से अचà¥à¤›à¤¾ पà¥à¤°à¥‡à¤® था। वह सदा साधारण गंवई लिबास में रहते थे। जीवन का अधिकांश à¤à¤¾à¤— उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने गाà¤à¤µ में ही गà¥à¤œà¤¾à¤°à¤¾à¥¤ बाहर से बिलà¥à¤•à¥à¤² साधारण दिखने वाले पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦ अनà¥à¤¦à¤° से जीवनी-शकà¥à¤¤à¤¿ के मालिक थे। अनà¥à¤¦à¤° से जरा सा à¤à¥€ किसी ने देखा तो उसे पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ होना ही था। वह आडमà¥à¤¬à¤° à¤à¤µà¤‚ दिखावा से मीलों दूर रहते थे। जीवन में न तो उनको विलास मिला और न ही उनको इसकी तमनà¥à¤¨à¤¾ थी। तमाम महापà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ की तरह अपना काम सà¥à¤µà¤¯à¤‚ करना पसंद करते थे। जीवन के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ उनकी अगाढ़ आसà¥à¤¥à¤¾ थी लेकिन जीवन की विषमताओं के कारण वह कà¤à¥€ à¤à¥€ ईशà¥à¤µà¤° के बारे में आसà¥à¤¥à¤¾à¤µà¤¾à¤¦à¥€ नहीं बन सके। धीरे - धीरे वे अनीशà¥à¤µà¤°à¤µà¤¾à¤¦à¥€ से बन गठथे। à¤à¤• बार उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने जैनेनà¥à¤¦à¤œà¥€ को लिखा "तà¥à¤® आसà¥à¤¤à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ की ओर बà¥à¥‡ जा रहे हो - जा रहीं रहे पकà¥à¤•à¥‡ à¤à¤—à¥à¤¤ बनते जा रहे हो। मैं संदेह से पकà¥à¤•à¤¾ नासà¥à¤¤à¤¿à¤• बनता जा रहा हूà¤à¥¤" |
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